Sunday, March 7, 2010

विधवा



वाह पायल जब

बजती थी

मानो कुछ गुनगुनाती थी

वह पायल जब

चलती थी
धड़कने रुक सी जाती थी

पर....
पर अब वाह पायल
कहीं नजर नही आती

पर अब वाह पायल
कभी नही छनछनाती
जाने क्या हो गया हैं
शायद....
शायद कुछ खो गया हैं

शायद कोई सो गया हैं
पहले वो सुहागिन थी
सजाती थी
संवरती थी
पायल भी पहनती थी
हर पल चहकती थी
पर....
पर अज वाह विधवा हैं
रब ने तो छिना हैं
पर दुनिया वालो ने
इसके रीती रिवाजो ने
मुश्किल किया जीना हैं
श्वेत वस्त्र

बिखरे बाल
बिना सजे
बिना संवरे
वह आज भी चलती हैं
पर आज उसके चलने में
कोई गुनगुनाहट नहीं

पर आज उसके चेहरे पर
वो मुस्कराहट नहीं
पर आज चूड़ियों में

वो खनखनाहट नहीं
बस धड़कने हैं
शांत....
नीरव....
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