Tuesday, August 10, 2010

पर्व आजादी का






निकली वो घर से
कॉलेज के लिए
थी रास्ते में
बजी सिटी
उड़ी फब्ती
नजर तक ना उठा सकी
चुनरी संभालती
तेज क़दमों से
पहुंची सिटी बस स्टैंड
एक कागज की पुड़िया
टकराई उस से
और गिरी पैरों में
डरते हुए उठाई
खुलते ही पुड़िया
माथे पर पडी सलवटें
सलवटों के बीच
छिपती बूंदे
पसीने की
कांपे हाथ
छूटी पुड़िया
फिर गिर पडी पैरों में
आई बस
लगी लाईन
चढ़ी वो बस में
पीछे से आता धक्का
वो सकुचा के रह जाती
हर बार कोई टकराता
घबरा के रह जाती
इसी बीच कोई हाथ
छू कर निकाल गया
पर ये वाकया
सिर्फ एक बार नहीं हुआ
वो सिमटती रही
सरकती रही
हाथ तो बदला
पर हरकत वही रही
रुकी बस
वो उतर
चली कॉलेज की ओर
कुछ कदम कर रहे थे
उसके कदमों का पीछा
फर्राटे से भागती एक बाइक
आया झपटा
जो ले उड़ा उसका दुपट्टा
किसी तरह हाल तक पहुंची
जहाँ मनाया जा रहा था
पर्व आजादी का...!





Wednesday, May 19, 2010

भारत में आज यह क्या हो रहा |





इंसानियत को इन्सान भुलाता चला
प्रभु का आशीष भी अब हैं टला
अश्लील चित्रों तक सीमित हैं कला
नौजवानों से शिकायत करूँ क्या भला
चहुँ दिस घना अंधियार छा रहा ,
भारत में आज यह क्या हो रहा |
नेता ने खाकर डकार न ली
अभिनेता ने कुचल कर सुधि न ली
भारत में न खिली राम राज्य की कलि
न हिंद को असली स्वतंत्रता मिली
सैनिकों को जगा देश सो रहा ,
भारत में आज यह क्या हो रहा |
मनुष बन गया हैं अमीरों का चेला
भारत बन गया हैं बेईमानो का मेला
सूर्य अस्त होने की कैसे यह वेला
देश के नेताओं ने कैसा खेल खेला
आतंकवाद अपनी जड़ें फैला रहा ,
भारत में आज यह क्या हो रहा |
नारी की अस्मत खुले आम हैं लुटते
अधिकारी इमान सरे आम हैं बेचते
दंगे नित नए बहाने हैं ढूंढते
देशी आग में विदेशी ताप हैं सकते
सोने की चिड़िया नाम कहाँ खो रहा ,
भारत में आज यह क्या हो रहा.. |

Friday, May 7, 2010

एक बेटी on Mother's Day


तू इस जग से है न्यारी........मेरी माँ तू मुझको है प्यारी.......में हु तेरी राजदुलारी ....|


इस दुनिया का सबसे खुबसूरत लफ्ज़ क्या है????अगर कोई मुझसे ये सवाल करे तो मेरा जवाब होगा---माँ.........जरुरी नही की हर कोई इस सवाल का यही जवाब दे|जवाब बहुत सारे हो सकते है....और बहुत अच्छे अच्छे हो सकते है......पर मेरे लिए तो इस दुनिया में सबसे अच्छी और प्यारी मेरी माँ है......इस दुनिया में सबसे खुबसूरत शब्द है माँ......इस दुनिया में सबसे खुबसूरत जगह है मेरी माँ की गोद ....इस दुनिया में सबसे खुबसूरत चीज है मेरी माँ की मुस्कराहट ......मेरी कविताओं का एक अनमोल शीर्षक है मेरी माँ......!!!


एक बेटी के लिए माँ कि क्या एहमियत होती हैं ये सिर्फ एक बेटी ही समझ सकती हैं|

यादों के धुंधले सांएं में
बनी माँ की परछाईं
खाने की वही खुशबू
में रसोई में भागी चली आयी
ध्यान आया सहसा
यह तो स्वप्न हैं
पाऊं तुझे हर कोने में
पर माँ तू कहाँ हैं??
यह मेरे ढूंढने कि
इन्तहा हैं...
माँ तेरी चूल्हे कि रोटी
याद आती हैं..
माँ तेरी परियों सी
बोली याद आती हैं.
तेरे बिना बालों में
कंघी नहीं कर पाती
दिनभर में तेरी रेशमी
साड़ियों को हूँ सहलाती
अकेले में तू जाने क्या
सोचा करती थी
गुमशुम चुपचाप सी
रहा करती थी
ये गुत्थी आज भी
में सुलझा नहीं पायी
लौट के न कभी तू आएगी
ऐसा कहती हैं ताई
क्यों छूटा मुझसे साथ तेरा
में तरस गयी कहाँ प्यार तेरा
वो टोकना वो प्यार से
समझाना तेरा
लड़की हूँ में
ये एहसास दिला कर
मर्यादाएं सिखलाना तेरा
क्यों में तेरे आसुओं का
मर्म न जान पायी
क्यों तेरे दर्द की
गहराई समझ न पायी माँ
लगे कहीं चोट
तो निकले आह
हर आह के साथ
दिल बोले माँ
कब ये काली घटायें बरसे
मेरा रोम रोम
तेरे प्यार को तरसे
माँ आज भी
तेरे प्यार की भूखी हूँ
कलि हूँ तेरे डाली की
पर सूखी हूँ माँ ..|


Monday, April 26, 2010

बदलाव


परिवर्तन जीवन का नियम हैं..इस तथ्य से कोई भी अपरिचित नहीं हैं......बदलाव निश्चित हैं....फिर चाहे वो कहीं भी और कैसे भी किसी भी रूप में हो.......हमे बदलाव को स्वीकार करना और उसे अपनाना आना चाहिए...नहीं तो हम पीछे रह जायेंगे......जो बदल नही सकता....झुक नहीं सकता.....वो धारा के साथ नहीं बह सकता....हमे तो धाराप्रवाह बहाना हैं ...कदम से कदम मिलाकर....तो थोडा लचीला तो होना पड़ेगा....प्रकृति भी बदलाव पसंद करती हैं.ये बात अलग हैं कि कुछ बदलाव हमने उस पर जबरदस्ती थोपे हैं जिसकी एक जबरदस्त कीमत एक दिन हमें ही चुकानी हैं....फिलहाल थोड़ी बहुत तो चुका ही रहें हैं...पर ये तो ब्याज हैं.....असल तो अब पता चलेगा....खैर बदलाव पर कुछ शब्दों का ताना बाना....





चाहे तारे चमके
चाहे चंदा चहके
चाहे हो घना अंधकार
होके रहेगा होनहार
काली रात के बाद उजली प्रभा तो आनी ही हैं
चाहे बादल गरजे
चाहे किसान तरसे
चाहे बिजली करे प्रहार
होके रहेगा होनहार
इन काली घटाओं के बाद बरखा तो होनी ही हैं
चाहे हो खाली हंसी के प्याले
चाहे खाने को पड़ते हो लाले
चाहे आँखों में अश्रुधार
होके रहेगा होनहार
दुःख कि काली छाया के बाद सुख तो आना ही हैं
चाहे बुराई रावण समान
राम आएगा धर के कमान
चाहे अधम बड़ा ताकतवर
होके रहेगा होनहार
बुराई पर अच्छाई कि जीत तो होनी ही हैं|

Friday, April 9, 2010

बिना दिल का इन्सान



कोई गिरा पड़ा हैं रास्ते में
पर हमें देर हो रही हैं
तभी हो गया तमाशा रास्ते में
अब ऐसी भी क्या देर हो रही हैं
क्यों न मजा लिया जाए तमाशे का
किया जाए दिल को खुश
किस दिल को खुश किया जा रहा हैं
में ये समझ नही पा रही हूँ
गर दिल हैं ही
तो क्यों रोते को देख रोना न आया
घायल को देख क्यों न दिल पिघलाया
दीन दुखी इतने हैं दुनिया में
क्यों न उन्हें गले से लगाया
दिल होता तब न.
दिल तो अब लुप्त हो रहा हैं
डार्विन का सिद्धांत सिद्ध हो रहा हैं
हमारे ढांचे से गायब होता दिल
चिल्ला चिल्ला कर बता रहा हैं की
अब हमे दिल की जरूरत ही नही
बिना जरूरत की चीजें हम रखते नही
हमे तो बस दिमाग चाहिए
सारे काज कर लेते हैं अब हम दिमाग से
शायद अब भगवन भी बनाएगा
बिना दिल का इन्सान

Saturday, March 27, 2010

कोख में आतंकवाद


दूर किसी आँगन में

खिल रही थी

एक कली....

नन्ही सी...

प्यारी सी कली..

नहीं--नहीं!!

कहाँ खिली वह कली..?

खिलने से पहले ही

मसल दी गयी

वह नाज़ुक कली

क्यों..??

क्योंकि वह कली गर

खिल जाती तो

माता पिता पर बोझ कहलाती

फिर....

फिर क्या भला..

ऐसे ही रोजाना

मसल दी जाती हैं..

हजारों कलियाँ

खिलने से पहले ही..

परी सी नाज़ुक

फूलों सी सुकोमल

गंगा सी पवित्र

अबोध

नादान

नन्ही कली का

अस्त हुआ सूरज

जाने कब उदय होगा.....???

Monday, March 8, 2010

Woman's wish on women's day


मै आज उड़ना चाहती हुं..
आसमान को छूना चाहती हुं
में हर गली में घूमना चाहती हुं
बहुत हुआ घर का काम

अब कुछ पल में
आराम चाहती हुं
छत पर बेठ कर घंटो

तारों को गिनना चाहती हुं
बन कर पंछी

आज फुदकना चाहती हुं
बहुत हो गयी डांट

हर वक्त किसी का साथ

इस पिंजरे से में
आज
छूटना चाहती हुं
हैं आंसू छिपे इन आँखों में
दिल में दर्द हैं हजार
आज में फूटना चाहती हुं
बनकर छोटी सी बच्ची

आज में उछलना चाहती हुं..

कोई निकाल सके वक्त मेरे लिए
तो में आज कुछ कहना चाहती हुं
आज प्यार भरे दो लफ्ज
में सुनना चाहती हुं
अगर सच कहूँ में आज

तो ये सच हैं के
में जीना चाहती हुं में
बस जीना चाहती हुं

पर मौत को नही
जिन्दगी को जीना चाहती हुं..
हाँ में जीना चाहती हुं..!

Sunday, March 7, 2010

विधवा



वाह पायल जब

बजती थी

मानो कुछ गुनगुनाती थी

वह पायल जब

चलती थी
धड़कने रुक सी जाती थी

पर....
पर अब वाह पायल
कहीं नजर नही आती

पर अब वाह पायल
कभी नही छनछनाती
जाने क्या हो गया हैं
शायद....
शायद कुछ खो गया हैं

शायद कोई सो गया हैं
पहले वो सुहागिन थी
सजाती थी
संवरती थी
पायल भी पहनती थी
हर पल चहकती थी
पर....
पर अज वाह विधवा हैं
रब ने तो छिना हैं
पर दुनिया वालो ने
इसके रीती रिवाजो ने
मुश्किल किया जीना हैं
श्वेत वस्त्र

बिखरे बाल
बिना सजे
बिना संवरे
वह आज भी चलती हैं
पर आज उसके चलने में
कोई गुनगुनाहट नहीं

पर आज उसके चेहरे पर
वो मुस्कराहट नहीं
पर आज चूड़ियों में

वो खनखनाहट नहीं
बस धड़कने हैं
शांत....
नीरव....
????????

Wednesday, March 3, 2010

होली


वो कैसे खेले होली..?
जिसका खो गया हमझोली...
क्यों न चल पाया..,
साथ कदम सात..
जाते जाते ये तो..,
बताता जा उसे एक बात
वो कैसे खेले होली..?
जिसका खो गया हमझोली...
क्यों वो रह गयी अकेली?
उसका कहाँ गया हमझोली?
वो कैसे खेले होली..?
जिसका खो गया हमझोली...
कल तलक जो
रंगों से थी रंगी
आज क्यों
आंसुओ में हैं भीगी ?
वो कैसे खेले होली..?
जिसका खो गया हमझोली...
खुशियों से सराबोर थी
जिसको टोली
आज क्यों सुनी सुनी सी हैं
उसकी झोली?
वो कैसे खेले होली..?
जिसका खो गया हमझोली...!!

Sunday, February 28, 2010

लल्ली जने को सोच मत करो राजाजी अब के में लल्ला जनूंगी...


ऐसे रीति-रिवाज जो स्त्री वर्ग के लिए कष्टप्रद हैं, उन्हें नष्ट करने का हरसंभव प्रयत्न किया जाना चाहिए|दहेज़ एक ऐसा रिवाज हैं|इस बुराई को कानून द्वारा ही नष्ट नही किया जा सकता,इसके लिए सामाजिक चेतना और जाग्रति भी आवश्यक हैं|ये कार्य भविष्य में बनाने वाली सास अछि तरह कर सकती हैं,जिन्हें की इस रिश्वत(दहेज़)को लेने से इनकार कर देना चाहिए|दहेज़ की पातकी प्रथा के खिलाफ जबरदस्त लोकमत बनाया जान चाहिए और जो नवयुवक इस प्रकार का कार्य करे उनका मुंह काला कर के बाजार में घुमाना चाहिए और समाज से बहिष्कृत कर देना चाहिए|इसमें तनिक भी संदेह नही की यह एक ह्रदयहीन बुराई हैं|जो एक नारी को कष्ट देता हैं.....क्या दुनिया की किसी भी नारी से उसका कोई सम्बन्ध नही.....उसे जन्म देने वाली कौन थी???उसे भाई कह कर पुकारने वाली....और फिर बेटी बन के उसके घर आँगन को महकाने वाली एक लड़की ही तो है.....फिर ......फिर कैसे???मुझे समझ नही आता....थोड़े से लालच के लिए इंसान इस हद तक केसे गिर सकता है..क्या उसकी बेटी या बहन कभी ससुराल नही जायेगी....???

Thursday, February 25, 2010

इजहार-ए -मोहब्बत


प्यार,कितना खुबसूरत शब्द बनाया है उपर वाले ने,पर हम ना जाने क्यों उस प्यार कि गहराई को समझ नही पा रहे,और एक लड़के का लड़की के प्रति और लड़की का लड़के के प्रति आकर्षण को ही प्यार का नाम दे देते हैं.में ये नही कहते कि लड़का और लड़की प्यार नही कर सकते.ऐसा नही हैं,प्यार होता हैं,बिलकुल होता हैं,बिना प्यार के जीने का कोई अर्थ ही नही,पर आज जिसे हम प्यार का नाम देकर घर से भाग रहे हैं या जहार खा रहे हैं वो प्यार नही.उसे जिद कह दो,या पागलपन,या कुछ भी.,पर वो प्यार नही.प्यार में समर्पण होता हैं.प्यार में सागर सी गहराई होती हैं.प्यार में ममता भी होती हैं.देश के लिए भी तो दिल में प्यार होता हैं.मरना ही हैं तो क्यों ना तो देश के लिए मरा जाये.में प्यार के खिलाफ नही,ना ही प्यार करने वालो के खिलाफ हुं.ना ही में वेलेंटाइन डे के खिलाफ हुं.जिन्हें मानना हैं,बिल्कुल मनाये,पर जिन्हें नही मानना कम से कम मानाने वालो पर अत्याचार ना करें,उनका विरोध ना करे,उनकी इच्छा हैं कि वो मानना चाहते हैं,और हम लोकतंत्र में जी रहे हैं.सबको अधिकार हैं अपनी मर्जी से अपने दायरे में रह के जीने का.ये पर्व किसी महान संत का जन्मदिन हैं,मनाने के कोई बुराई नही.