Monday, March 8, 2010

Woman's wish on women's day


मै आज उड़ना चाहती हुं..
आसमान को छूना चाहती हुं
में हर गली में घूमना चाहती हुं
बहुत हुआ घर का काम

अब कुछ पल में
आराम चाहती हुं
छत पर बेठ कर घंटो

तारों को गिनना चाहती हुं
बन कर पंछी

आज फुदकना चाहती हुं
बहुत हो गयी डांट

हर वक्त किसी का साथ

इस पिंजरे से में
आज
छूटना चाहती हुं
हैं आंसू छिपे इन आँखों में
दिल में दर्द हैं हजार
आज में फूटना चाहती हुं
बनकर छोटी सी बच्ची

आज में उछलना चाहती हुं..

कोई निकाल सके वक्त मेरे लिए
तो में आज कुछ कहना चाहती हुं
आज प्यार भरे दो लफ्ज
में सुनना चाहती हुं
अगर सच कहूँ में आज

तो ये सच हैं के
में जीना चाहती हुं में
बस जीना चाहती हुं

पर मौत को नही
जिन्दगी को जीना चाहती हुं..
हाँ में जीना चाहती हुं..!

38 टिप्पणियाँ:

Unknown said...

It is really awesome.........from the first line to last....it has positive energy....
Ab to seriosly UDNE ko mann kar raha hai........

APNA GHAR said...

sach mai mahilao ko ek nayi peanena deti hai ye rachna, JINDGI KO JEENA CHAHTI HU, HAA MAI JEENA CHAHTI HU, LEKIN SIRF CHAHNE SE KUCHCH NAHI HOGA, BALKI HAA MUJHE JEENA HOGA , LIKHE TO JYADA SAHI HOTA

vimlesh brijwall said...

mujhe aapki ye rachna bahut bahut achhi lagi ....
मै आज उड़ना चाहती हुं..
आसमान को छूना चाहती हुं
में हर गली में घूमना चाहती हुं
बहुत हुआ घर का काम
अब कुछ पल में आराम चाहती हुं
छत पर बेठ कर घंटो
तारों को गिनना चाहती हुं
बन कर पंछी
आज फुदकना चाहती हुं
बहुत हो गयी डांट
हर वक्त किसी का साथ
इस पिंजरे से में आज छूटना चाहती हुं
हैं आंसू छिपे इन आँखों में
दिल में दर्द हैं हजार
आज में फूटना चाहती हुं
बनकर छोटी सी बच्ची
आज में फुदकना चाहती हुं
कोई निकल सके वक्त मेरे लिए
तो में आज कुछ कहाँ चाहती हुं
आज प्यार भरे दो लफ्ज
में सुनना चाहती हुं
अगर सच कहूँ में आज
तो ये सच हैं के
में जीना चाहती हुं में
बस जीना चाहती हुं
पर मौत को नही
जिन्दगी को जीना चाहती हुं..
हाँ में जीना चाहती हुं..!
........................................!
mafi chahti hu, mene ise copy kar liya hai

संजय भास्‍कर said...

महिला दिवस की शुभकामनायें

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

bharat kumar maheshwari said...

अति सुन्‍दर

bharat kumar maheshwari said...

शुभकामनायें

Yashwant Mehta "Yash" said...

मै आज उड़ना चाहती हुं..
आसमान को छूना चाहती हुं

fly high, sky is the limit. Good Poem

Unknown said...

दिल में दर्द हैं हजार
आज में फूटना चाहती हुं
बनकर छोटी सी बच्ची
आज में फुदकना चाहती हुं

बेहद सुन्दर और meaningful song,अपने आप में अनूठी कविता,बहुत ही अच्छी .

विकास पाण्डेय

www.विचारो का दर्पण.blogspot.com

vinodbissa said...

जीवन की आपाधापी में रोज खटती महिला के अहसासों का इससे अच्छा प्रस्तुतिकरण बहुत ही मुश्किल है ॰॰॰॰॰ शुभकामनायें ॰॰॰॰॰॰

Unknown said...

एक युवा होती हुई बच्ची के मन के उदगार बडी कुशलता से शब्दो मे ढाल दिये है
राजेन्द्र यादव द्वारा "सारा आकाश" के अन्त मे लिखे को याद करता हू

सेनानी करो प्रयान अभय
भावी इतिहास तुम्हारा है
ये अनल शमा के बुझते है
सारा आकाश तुम्हारा है

हर्षिता said...

बहुत ही अच्छी कविता है।

बाल भवन जबलपुर said...

Ati sundar dimple ji
my best wishesh

मनोज कुमार said...

बहुत अच्छी कविता।

Anonymous said...

"में जीना चाहती हुं
में बस जीना चाहती हुं
......
जिन्दगी को जीना चाहती हुं.."
प्रभावशाली प्रस्तुति - हार्दिक शुभकामनाएं.

रचना दीक्षित said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुती

रोहित श्रीवास्तव said...

डिम्पल जी आप की ये कविता एक अनुपम कृति है.......नारी की अंतर्वेदना को बहुत ही अच्छे शब्दों में पिरोया है आपने.....हम विकास(तथाकथित) विकास तो कर रहे है परन्तु स्त्री की दशा आज भी बहुत दयनीय है....स्त्री माँ है,बहिन है, पत्नी है,दोस्त है......पुरुषो से ज्यादा संवेदनशील है परन्तु फिर भी आज भी उसे दोयम दर्जे का समझा जाता है...एक स्त्री की ही वजह से में इस संसार में आया हू और आप की ये कृति पढ़ रहा हू...
उम्मीद करता हू की हम नारी को फिर वही सम्मान देंगे जो हमारे वेद हमें सिखाते है...."यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता "

डॉ. सत्यनारायण सोनी said...

अरे वाह! बेहद भावपूर्ण लिखते हैं आप। अच्छा लगा।

Unknown said...

aapki sari post bahut achchi hai mai in comment bhi karna chahta hun. par kya karu samay hi nahi nikal pata. kewal formality ke liye comment karna shayad meri fitrat me nahi hai. but aisa lagta hai pali aakar fans gaya hoon rangon ke shahar me rachnatmakta apni chamak kho rahi hai. bus udasi ka aalam rahta hai






mai samay milne par aapko achche comment karunga. vaise aapka blog kam hi samay me bahut famus ho gaya hai. ise blogvani or chitthajagat par bhi dal dijiye taki aapko or bhi prasiddhi mile
with regard
pradeep

ok by take care

विजयप्रकाश said...

आपकी यह कविता बहुत अच्छी लगी.

kunwarji's said...

"दिल में दर्द हैं हजार
आज में फूटना चाहती हुं"

bahoot khoob....
kunwar ji,

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" said...

bahut khoob likha hai

shresh to hai hi naari ke liye prernadayak bhi hai......badhai

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

jo chaahati ho.....vo sab hoga.....jeena chaahati ho to bhi.....ab to bas himmat chaahiye hoti hai jeene ke liye.....aur vo tumne juta lee hai.....sach jeeo....khoob jeeo....aur poorjor jeeo.....!!

दीनदयाल शर्मा said...

मैं आज उड़ना चाहती हूँ... कविता बहुत अच्छी लगी...किसी भी रचना में शब्दों का दोहराव पाठक के भीतर अरुचि पैदा करता है... बन कर पंछी / आज मैं फुदकना चाहती हूँ... ये तो अच्छा लगा...लेकिन कविता के बीच में आपने एक जगह लिखा है. ....बन कर छोटी बच्ची / आज मैं फुदकना चाहती हूँ....ये ठीक नहीं बैठा...कृपया शब्द या वाक्यों के दोहराव से बचें..... बाकि आपकी कविता और कविता के भाव बहुत ही बढ़िया है...हार्दिक बधाई... http://deendayalsharma.blogspot.com

दीनदयाल शर्मा said...

मेरे सुझाव पर आपने अपनी कविता में संशोधन किया...ये आपका बड़प्पन है..अब कविता बहुत अच्छी बन गई है... मैं आपका आभारी हूँ...धन्यवाद..

दीनदयाल शर्मा said...

आपकी कविता अच्छी तो बन गई...लेकिन इसकी दो पंक्तिओं में प्रूफ की ग़लतियाँ थोड़ी सी और अखर रही है.......कोई निकाल सके वक्त मेरे लिए.../ तो मैं आज कुछ कहना चाहती हूँ........आपकी कविता में "निकाल" की जगह "निकल" और "कहना" की जगह "कहाँ" छपा है...संशोधन करने के बाद फिर किसी को भी दिक्कत नहीं होगी.....ठीक करने के बाद कृपया मेरे ऑरकुट पर सूचना देने का कष्ट करना........धन्यवाद.... Deendayal Sharma

bharat kumar maheshwari said...

कयों डरे जिन्दगी में ,क्या होगा ....कुछ ना होगा तो तजुर्बा तो जरुर होगा...

अरविन्द व्यास said...

सुन्दर रचानाये है सब आपकी डिम्पल जी, खुबसुरत ब्लोग बनाया है
जिवन सरल है,दुरुस्त है,
जब आत्मा तन्द्रुस्त है
अरविन्द व्यास

Kalamkar Rekha Mohan said...

sunder rachne hein....vs zina chahti hu.... yahi to chah hein hr nari ki... its good on women day...nice blog.

kalpna said...

बढिया लिखा आपने....."

kalpna said...

बेहद सुंदर रचना जिसके माध्यम से अति संवेदनशील और सोचनीय मुद्दा उठाया है - हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

आपकी प्रस्तुति प्रभावशाली है.

Unknown said...

Bahut hi achi peshkash, par mujhe lagta hai aj kal women ki condition India me kafi sudhar gayi hai....

RAJ SINH said...

मन की बेमिसाल उड़ान और हिम्मत के साथ .

आमीन !

bharat kumar maheshwari said...

मिरे अश्क भी हैं इस में ये शराब उबल न जाये
मेरा जाम छूने वाले तेरा हाँथ जल न जाये

Rocking Rathi said...

कोई दूर न सभी पास है'
कौन आम और कौन ख़ास है।
अपने पराये का अंतर पर,
सबसे सबको लगी आस है।
इस उलझन की चिर सुलझन का कोई राह दिखा जाती।
दोस्त बात दूर की जुगनू भी मैं बन पाती।।

Anupriya said...

simpli awesome........

gailordjackee said...

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