बन गज़ल , मैं
किसी के लबों पर गुनगुनाने लगी हुं...
बन ख़ुशी , मैं
किसी के चेहरे पर मुस्कराने लगी हुं...
बन ख्वाब , मैं
किसी को नींद में बहकाने लगी हुं...
बन रोशनी , मैं
किसी के घर में जगमगाने लगी हुं...
बन छाँव , मैं
किसी को धूप से बचाने लगी हुं...
बन खास , मैं
किसी को बहुत पसंद आने लगी हुं...
बन प्यार , मैं
किसी के दिल को धड़काने लगी हुं॥
Sunday, October 9, 2011
बन गज़ल
प्रस्तुतकर्ता Dimple Maheshwari पर 10:10 AM 53 टिप्पणियाँ
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