वो कैसे खेले होली..?
जिसका खो गया हमझोली...
क्यों न चल पाया..,
साथ कदम सात..
जाते जाते ये तो..,
बताता जा उसे एक बात
वो कैसे खेले होली..?
जिसका खो गया हमझोली...
क्यों वो रह गयी अकेली?
उसका कहाँ गया हमझोली?
वो कैसे खेले होली..?
जिसका खो गया हमझोली...
कल तलक जो
रंगों से थी रंगी
आज क्यों
आंसुओ में हैं भीगी ?
वो कैसे खेले होली..?
जिसका खो गया हमझोली...
खुशियों से सराबोर थी
जिसको टोली
आज क्यों सुनी सुनी सी हैं
उसकी झोली?
वो कैसे खेले होली..?
जिसका खो गया हमझोली...!!
Wednesday, March 3, 2010
होली
प्रस्तुतकर्ता Dimple Maheshwari पर 1:04 AM
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8 टिप्पणियाँ:
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
dimpal ji ..aapki lekhni ki utkrisht rchna ...bdhayee
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सुंदर रचना शुभकामनायें
bahoot khoob....
बहुत सताते हैं रिश्ते जो टूट जाते हैं
खुदा किसी को भी तौफीक-ऐ-आशनाई न दे
मैं सारी उम्र अंधेरों में काट सकता हूँ
मेरे दीयों को मगर रौशनी पराई न दे
हम ग़ज़ल में तेरा चर्चा नहीं होने देते
तेरी यादों को भी रुसवा नहीं होने देते
हार्दिक धन्यवाद मेरे जैसे नवागंतुको का स्वागत करने और मार्गदर्शन करने के लिए,
अभी इस लायक नही हून की आपकी रचना पर कोई टिप्पणी दे सकूँ
लेकिन जितना भी समझ मे आया अतिउत्तम रचना
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