बन गज़ल , मैं
किसी के लबों पर गुनगुनाने लगी हुं...
बन ख़ुशी , मैं
किसी के चेहरे पर मुस्कराने लगी हुं...
बन ख्वाब , मैं
किसी को नींद में बहकाने लगी हुं...
बन रोशनी , मैं
किसी के घर में जगमगाने लगी हुं...
बन छाँव , मैं
किसी को धूप से बचाने लगी हुं...
बन खास , मैं
किसी को बहुत पसंद आने लगी हुं...
बन प्यार , मैं
किसी के दिल को धड़काने लगी हुं॥
Sunday, October 9, 2011
बन गज़ल
प्रस्तुतकर्ता Dimple Maheshwari पर 10:10 AM
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53 टिप्पणियाँ:
आज बहुत दिनों बाद आपकी प्रेमपूर्ण अहसासों से भरपूर यह रचना पढ़कर मन प्रभावित हो गया ....!
Sundar Anubhuti hai.......
Par muje thodi Nakaratmak si lagi......
ho sakta hai muje Kavita ki samaj na ho.....
Par me kisi Ladki/ Naari me Abla hone ke Bhav nhi bhar sakta.....
Uasko Abla hone ki Kalpna nhi de sakta........
itna jarur kanhuga Nari tum Sabla bno Taqtwar bno..... Bhula do Abla shabd ko............ ki kabhi ye shabd Kalpna hua karta tha.......
अत्यंत ही सुन्दर रचना है........
बस जो लिखा है ........वो बरकरार रहे...... शुभकामनाएं........
मनोज
कोमल एहसास की सुन्दर रचना
बड़ी ही कोमल अभिव्यक्ति।
waah
अतिसुन्दर.
अतिसुन्दर अभिव्यक्ति...शुभकामनाएं.....
मुझे तो लगता है की आप पूरी तरह से बदल चुकी हैं. इतनी गज़ब सकारात्मकता पहले कभी नहीं थी. मुझे बहुत बहुत खुशी हो रही है. आपको बधाई और शुभकामनाएं. मेरे मत में दूसरों के दुखों में शामिल होना अच्छा तो है लेकिन किसी को खुश कर देने की सोच से बड़ी सकारात्मकता नहीं हो सकती. इसे केवल सौंदर्य या श्रिंगार तक सीमित होकर नहीं देखना चाहिए. किसी दूसरे को ख़ुशी देने पर हुई प्रसन्नता इस कविता में साफ़ झलकती है..... बहुत खूब..ऐसा लग रहा है की अबकी बार तो सूफी कविता ही आने वाली है...
wow............ upcoming mahadevi verma...........................
wow........... upcoming mahadevi verma
behad khubsurat.....
सुभानाल्लाह ........'हूँ' शायद गलत टाइप कर दिया है आपने.......अरसे बाद आपके ब्लॉग पर कोई पोस्ट देख कर अच्छा लगा|
"हुं" के बजाय "हूँ" लिखना वर्तनी की दृष्टि से ठीक होगा.
लिखने में प्रवृत्त हो सकना एक स्वागतयोग्य परिघटना है,शुभकामनाएं..
प्रेम रस से सरावोर करती सुंदर कविता अत्यंत प्रभावशाली है. बधाई.
वाह! बहुत सुन्दर/प्यारी रचना...
सादर बधाई....
बन रचना मै सबके दिल में
समाने लगी हूँ ।
बहुत खूबसूरत ।
वाह! बहुत सुन्दर.......
बहुत बढ़िया रचना"कल्पना" जी
आपमेरे ब्लॉग पर एक वरिस्थ सहयोगी के रूप में भी आमंत्रित है कृपया प्रतिक्रिया छोड़े तो अपना emil id भी लिखे तांकि सहयोगी के रूप में आपको जोड़ सकूँ
इसी से जुडी कुछ चीजें यहाँ देखे व् इस ब्लॉग पर एक सहयोगी के रूप में जुड़ें
http://jeetrohann1.blogspot.com/2011/10/blog-post_1666.html
Bahut sunder!
It's miracle...simply miracle ....
what a changed and sweet mode of writing.....
congrats...
प्रेम की सुकोमल भावनाओं में डूबी
रचना सचमुच मन भावन है ...
बधाई स्वीकारें .
बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति , बधाई.
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें, आभारी होऊंगा .
सुन्दर भावपूर्ण रचना.
कृपया मेरे ब्लोग्पर्भी पधारने का कष्ट करें, आभारी होऊंगा .
aaj to dimple kafi badi ho gayi lag rahi hain...jimmedari bhari rchna ..badhiya ..badhe chlo
सुन्दर प्रस्तुति.
नववर्ष की आपको हार्दिक शुभकामनाएँ.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
गहराई में समाहित पंक्तिया.....बहुत खूब
थोडा सा समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर भी आईये..
very nycxx....
very nycxx....
Sundar rachna. Bejod Prastuti.
प्रेम से भरपूर कोमल एहसास से जुडी आपकी ये रचना ज़बरदस्त लगा!
सुन्दर कोमल अभिव्यक्ति.
शुभकामनाएं
पहली बार आपकी पोस्ट पर आना हुआ.बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति है "बन गज़ल".और लिखें खूब लिखें.
भावना प्रधान कविता लेकिन क्या किसी की पहली पसंद बनना ही ज़िन्दगी का हासिल है खुद समर्पित होकर या अलग से कोई 'मैं 'भी होता है .कृपया 'हूँ 'कर लें 'हुं'को .शब्द को बोलकर देखें वर्तनी स्पष्ट हो जायेगी .आपका प्रोफाइल खासा आकर्षक है हम तो यही कहेंगे -सितारों से आगे जहां और भी हैं ,तेरे सामने इम्तिहान और भी हैं .शुरुआत अच्छी है .लिखती रहिए खुद को बूझती रहिए .
मेरे ब्लाग पर आने के लिए आभार।
आप तो अच्छा लिखती हैं, निरंतर लेखन के लिए शुभकामनाएं।
Nice!
very imaginative as per reality!
बहुत अच्छा जी
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
मेरे ब्लॉग पर आकर
बहुमूल्य सुझाव देने के लिये
बहुत बहुत धन्यबाद !
आगे मैं कोशिश करूँगा !
आभार !
बन प्यार , मैं
किसी के दिल को धड़काने लगी हुं॥
bahut achchi lagi......
very good.....
♥
डिंपल जी
आपके लिए गुलजार जी के शब्द -
हंसती रहे तू हंसती रहे
हया की लाली खिलती रहे
ज़ुल्फ के नीचे गर्दन पे
सुबह-ओ-शाम मिलती रहे
सोन्धी सी हंसी तेरी
खिलती रहे मिलती रहे…
बन ख्वाब , मैं
किसी को नींद में बहकाने लगी हूं…
क्या बात है !
आपके हृदय का यह आनंद बना रहे
… और बेहतर लिखें
हार्दिक शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत ही सुंदर रचना ,बेहतरीन प्रस्तुति,......
welcome to new post...वाह रे मंहगाई
प्यार जब किसी से होता है तो यूं ही किसी की ग़ज़ल और छाया बन जाता है...बेहतरीन हृदय से निकली शब्दावली.
रेशमी एहसास भरी सुंदर भावाभिव्यक्ति।
सुंदर रचना।
गहरे जज्बात।
बेहतरीन.... बेमिसाल.... अदभुत।
मेरे ब्लॉग पर आप आईं,बहुत अच्छा लगा.
आपका लेखन उर्जावान सकारात्मक है.
आपकी नई रचना का इंतजार है,डिम्पल जी.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर फिर से आईयेगा.
'हनुमान लीला- भाग ३' आज ही जारी की है.
आशा है आपको पसंद आएगी.
kya likhun ......??? bs ak hi shabd Lajabab .
बेहतरीन रचना बधाई
bahut hee sundar rachana..... dheron
shubhkamnayen
बन प्यार , मैं
किसी के दिल को धड़काने लगी हुं॥..
प्रिय डिम्पल जी अभिवादन और गणतंत्र दिवस , वसंत पंचमी की हार्दिक शुभ कामनाएं ..
भ्रमर का दर्द और दर्पण भी आप का स्वागत करता है ...काश ऐसा ही सब बन जाएँ ..प्रेम ही प्रेम प्यार बरसे जहां में ..कोमल भाव ..सुन्दर मूल भाव
....
भ्रमर का दर्द और दर्पण में भी आइये - अपना स्नेह बनाये रखें और समर्थन भी हो सके तो दें /
भ्रमर ५
अरे वाह डिम्पल जी मज़ा आ गया आपके ब्लाग पर आकर और इतनी अच्छी रचना पढकर।
अत्यंत सुन्दर दृष्टिकोण! बस ऐसी ही सकारात्मक सोच बना कर साहित्य सृजन करते रहें.
nice lines.....
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