एक दुनिया, जो इन्सां ढूंढता था हमेशा
वो दुनिया छतों पर आ गयी हैं
हर चेहरा, गुलाबी मुस्कराहट भरा हैं
डोर लिए पतंग की, ताक आसमाँ को रहा हैं !!
डोरों की उलझन में ऐसा उलझा पखेरू
बहुत छटपटाया बच न पाया पखेरू
चिड़ा था वो नादाँ, चुगने दाना चला था
अपनी चिड़िया और भूखे बच्चों से बिछुड़ा था
सतरंगी आसमां में रंग और एक बिखरा था!!
बिन चिडे के वो चिड़िया हो अकेली चली थी
दाना निज बच्चों का चुगे जा रही थी
वह चिड़िया सुनहरी उड़े जा रही थी
तभी क्या था देखा चिड़िया ने बतलती हुं सबको!!
तेज तपती दुपहरी आग बरसाता सूरज
जमीं गर्म अंगारे धधका रही थी
रो रह था सड़क पर इक मासूम बचपन
कोई आ रहा था, कोई जा रहा था
हर इक काम अपने यूँ निपटा रहा था
पास ही पर खड़े थे पुचके-पोहों के ढेले
लोग खाते-मुस्काते, मस्त बतिया रहे थे
देख कर कर रहे थे, वो अनदेखा उसको
न शरमा रहे थे, न पछता रहे थे
रो रहा था वो नन्हा, भूख गर्मी से परेशां
धरती पर न इन्सां नजर रहा था
फैलाये पंख, छाया चिड़िया ने बिखेरी
उस मासूम की बन गयी थी वो प्रहरी
चोंच में जो भर लायी थी वो चंद दाने
झट से नन्हे को लगी वो खिलाने !!
ये चिड़िया, कोई आम चिड़िया नहीं हैं
मानवता यही दया करुणा यही हैं
यह कहानी, महज एक कहानी नहीं हैं
मेरे गीत, दिल की ज़ुबानी यही हैं
समझो तो समझो कहाँ जा रहे हम
कुछ पाने की शिद्दत में क्या खो रहे हम
ममता को मन में मिला लो फिर एक बार
प्रेम की लौ दिल में जला लो फिर एक बार
4 टिप्पणियाँ:
नमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार (20 -08-2013) के चर्चा मंच -1343 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
बहुत ही खूबसूरत रचना ...
“ तेरा एहसान हैं बाबा !{Attitude of Gratitude}"
अंदर तक छूती है ये संवेदनशील रचना, सुन्दर , बधाई ओर शुभकामनायें ...
Thank u ajay ji, arun ji and madan ji
Post a Comment