Saturday, March 8, 2014
महिला दिवस
प्रस्तुतकर्ता Dimple Maheshwari पर 1:37 AM 3 टिप्पणियाँ
मेरी कल्पना के पन्नों से......
आज मेरी डायरी के हर राज खुलेंगे
हर पन्ने के लफ्ज, दिल की बात कहेंगे सर्द दुपहरी में कांपते कदम बढ़े तेरी और
पाया बुखार में तड़पता अलाव तापता
मेरी नजरों ने देखा कि लकड़ी खत्म होने को हैं
तेरी नज़रों ने देखा कि मेरे हाथ में एक डायरी हैं
डायरी का पन्ना - पन्ना स्वाहा हो गया
कुछ इस तरह इश्क़ मेरा बयां हो गया।
दिल से ..... डिम्पल
प्रस्तुतकर्ता Dimple Maheshwari पर 1:34 AM 4 टिप्पणियाँ
स्यापा
प्रस्तुतकर्ता Dimple Maheshwari पर 1:32 AM 0 टिप्पणियाँ
Tuesday, February 25, 2014
शब्दों की गुत्थमगुत्थी
बह जाने दो मुझे ....... भावों की सरिता में।
होंगे तुम अथाह सागर बेइन्तहा मोहब्बत के ,
में बारिश कि पहली बूँद, चाहत बनी चाकोर की।
तुम वाह -वाही लूटने वाले शेर, कथा कहने वाले लेख ,
में कविता सादगी भरी, में ही ग़ज़ल तेरे अधरों की।
में हवा का झोंका हूँ , तूफ़ान भी हिला न पाएगा ,
गगन सी ऊंचाइयों पर रहकर भला .......
धरती से मिलन कैसे कर पाओगे ??????
प्रस्तुतकर्ता Dimple Maheshwari पर 4:28 AM 3 टिप्पणियाँ
Friday, February 14, 2014
मेरी कल्पना के पन्नो से …
मेरी कल्पना के पन्नो से …
प्रेम कोई शब्द नहीं जिसे लिख पाओगे
कोई अर्थ नहीं जिसे समझ पाओगे
ये तो वीणा का सुर हैं …
बह गए तो बस बहते ही चले जाओगे
खो गए गर प्रेम में तो लौट के न आ पाओगे
कैसे मना लोगे प्रेम को एक दिन में भला
शुरू जो हुआ तो इसका कोई अंत नहीं
गुलाब-तोहफा भला कैसे इज़हार कर पायेगा
बयां जो तेरी कविता ने किया
उसका कोई विकल्प नहीं ---
दिल से --- डिम्पल
प्रस्तुतकर्ता Dimple Maheshwari पर 3:40 AM 5 टिप्पणियाँ
Monday, August 19, 2013
इंसानियत की चिड़िया
एक दुनिया, जो इन्सां ढूंढता था हमेशा
वो दुनिया छतों पर आ गयी हैं
हर चेहरा, गुलाबी मुस्कराहट भरा हैं
डोर लिए पतंग की, ताक आसमाँ को रहा हैं !!
डोरों की उलझन में ऐसा उलझा पखेरू
बहुत छटपटाया बच न पाया पखेरू
चिड़ा था वो नादाँ, चुगने दाना चला था
अपनी चिड़िया और भूखे बच्चों से बिछुड़ा था
सतरंगी आसमां में रंग और एक बिखरा था!!
बिन चिडे के वो चिड़िया हो अकेली चली थी
दाना निज बच्चों का चुगे जा रही थी
वह चिड़िया सुनहरी उड़े जा रही थी
तभी क्या था देखा चिड़िया ने बतलती हुं सबको!!
तेज तपती दुपहरी आग बरसाता सूरज
जमीं गर्म अंगारे धधका रही थी
रो रह था सड़क पर इक मासूम बचपन
कोई आ रहा था, कोई जा रहा था
हर इक काम अपने यूँ निपटा रहा था
पास ही पर खड़े थे पुचके-पोहों के ढेले
लोग खाते-मुस्काते, मस्त बतिया रहे थे
देख कर कर रहे थे, वो अनदेखा उसको
न शरमा रहे थे, न पछता रहे थे
रो रहा था वो नन्हा, भूख गर्मी से परेशां
धरती पर न इन्सां नजर रहा था
फैलाये पंख, छाया चिड़िया ने बिखेरी
उस मासूम की बन गयी थी वो प्रहरी
चोंच में जो भर लायी थी वो चंद दाने
झट से नन्हे को लगी वो खिलाने !!
ये चिड़िया, कोई आम चिड़िया नहीं हैं
मानवता यही दया करुणा यही हैं
यह कहानी, महज एक कहानी नहीं हैं
मेरे गीत, दिल की ज़ुबानी यही हैं
समझो तो समझो कहाँ जा रहे हम
कुछ पाने की शिद्दत में क्या खो रहे हम
ममता को मन में मिला लो फिर एक बार
प्रेम की लौ दिल में जला लो फिर एक बार
प्रस्तुतकर्ता Dimple Maheshwari पर 3:01 AM 4 टिप्पणियाँ
Wednesday, July 31, 2013
जी शादी सिर्फ़ दो लोगों के बीच का बंधन नहीं हैं … शादी दो परिवारों के बीच होती हैं … पर जिन्हें रिश्ते ही बंधन लगते हो …. उनके लिए शादी की पवित्रता को समझना थोडा कठिन हैं …… और रही बात उस एक मिया बीवी के रिश्ते में खुश रहने की तो नारीजी आपके माता पिता नाहक ही आपका बोझ उठाया और आपके पति के माता पिता ने उनका …वो लोग भी आपके नक़्शे कदम पर चले होते तो शायद आप दोनों ही न होते …. आपके भाई की शादी भी इसी सोच वाली लड़की से हो और वो अपने पति के साथ अकेले सुखी संसार बिताये …आपके बच्चे भी इसी एक रिश्ते में खुश रहे …। शायद इस दर्द का एहसास अभी न हो आपको क़्यो कि फ़िलहाल आप इस दर्द का वितरण कर रही हैं … पर झेलने की बारी भी आएगी…आप जिन रिश्तो में नहीं बंधना चाहती वो रिश्ते शायद आपके पति के साथ बरसों से हैं पर आप कामयाब होती दिख रही मुझे अपने साथ अपने पति को भी इसी एक रिश्ते में ख़ुशी से जीने की आदत डालने की …. परिवार शायद इसीलिए ख़तम हो रहे हैं …. परिवार को तो नारी जोडती हैं पर जब आज की पढ़ी लिखी नारी ने परिवार तोड़ने का जिम्मा अपने सर ले ही लिया हैं तो …अजीब लगता हैं कभी कभी …सिर्फ़ में और तू और कोई नहीं … कोई रिश्ता नहीं कोई परिवार नहीं …. रोक टोक नहीं । तू मुझे देख कर जिये और में तुझे देख कर … प्यार … अच्छा हैं … पर ये स्वार्थी प्यार हैं … और मेरी डिक्शनरी इसे प्यार नहीं कहती ….
प्रस्तुतकर्ता Dimple Maheshwari पर 7:09 AM 3 टिप्पणियाँ
Tuesday, May 21, 2013
मन
प्रस्तुतकर्ता Dimple Maheshwari पर 1:24 AM 12 टिप्पणियाँ
Tuesday, April 23, 2013
बाबा ऐसा वर ढून्ढो
सब ठीक है पापा, आप जिसे भी चुनोगे वो Best होगा, I Know that...पर पापा में कुछ और भी चाहती हुं..मेरे लिए Life का मतलब सिर्फ Enjoy करना नहीं है...जो मुझे खुश रखे…ये ठीक है...जो एक अच्छी Job में हो ..ये ठीक है ..परिवार अच्छा हो ..ये ठीक है...सब लोग मुझसे प्यार करें ...ये ठीक है...सब कुछ देखना जायज है।
पर पापा ...पापा, में सिर्फ एक बात चाहती हूँ ...वो ये पापा कि वह एक बहुत ही अच्छा इंसान हो ...उसमे इंसानियत कूट-कूट कर भरी हो ...कभी किसी चींटी को भी न दुखा सके ..सबके दुःख में दुखी हो जाये ...सभी के दुःख दूर करने की कोशिश करे ..दूसरों की ख़ुशी में खुश हो ले..उसकी Job सिर्फ मजे करने के लिए या मेरी और अपनी जिन्दगी को खुशहाल बनाने तक सिमित न हो… उसकी Job, उसकी Salary , उसका Promotion इन सभी के पीछे न जाने कितने लोगो की दुआएं हो ...एक ऐसा लड़का जिसके लिए अपने Mummy -Papa , भगवान से भी बढ़ कर हो ... जिसका मन साफ़ हो, इरादे पाक हो ..जिसकी बातों में सच्चाई हो..जिसके काम नेक हो ...जिसका चेहरा चाहे खुबसूरत न हो ..पर दिल...दिल बहुत खुबसूरत हो ..आइने की तरफ साफ़,पानी जैसा सरल ....ऐसा हैं मेरे सपनों का राजकुमार ...जिसके मन में नारी जाति के लिए बहुत सम्मान और आदर की भावना हो…जो सिर्फ मेरे लिए ही न सोचे...अपने परिवार ...समाज ...और इन सबसे आगे बढ़कर अपने देश के लिए सोचे...और सिर्फ सोचे ही नहीं बल्कि ऐसा काम भी करे ....जिसके लिए समाज का दायरा बहुत बड़ा हो...एक जाति या किसी भी ऐसे संकुचित दायरे में सिमटा हुआ न हो....हम दोनों मिल कर ऐसी कविताये लिखे जो एक Change लाये...प्यार की भावना फेलाए...अपनेपन की लहर लाये।
राह चलते भी अगर कुछ अच्छा करने का मौका मिले तो हम जरुर करे ...मेरे हर अच्छे फैसले में जो मेरे साथ हो…और जिसके हर सही फैसले में, मैं उसमे साथ रहूँ....और ये साथ बहुत से चेहरों पर मुस्कराहट लेकर लाये…… पापा ....आप समझ रहें हैं न, कि मैं क्या चाहती हूँ .......
प्रस्तुतकर्ता Dimple Maheshwari पर 11:25 PM 26 टिप्पणियाँ
Monday, March 26, 2012
कभी गले सकता मुझे
कभी गले लगा सकता मुझे
प्रस्तुतकर्ता Dimple Maheshwari पर 8:28 AM 80 टिप्पणियाँ
Friday, January 20, 2012
वृक्ष
वृक्ष
कितना तटस्थ
छायादार
खुशियाँ अपार
हरा
फूलों से भरा
अटल
मन सा चंचल
ये वृक्ष
भगवान का अक्ष
अकेला
पक्षी का बसेरा
नादान
प्रभु का वरदान
वृक्ष
हाँ ये वृक्ष
प्रस्तुतकर्ता Dimple Maheshwari पर 9:48 AM 40 टिप्पणियाँ
Sunday, October 9, 2011
बन गज़ल
बन गज़ल , मैं
किसी के लबों पर गुनगुनाने लगी हुं...
बन ख़ुशी , मैं
किसी के चेहरे पर मुस्कराने लगी हुं...
बन ख्वाब , मैं
किसी को नींद में बहकाने लगी हुं...
बन रोशनी , मैं
किसी के घर में जगमगाने लगी हुं...
बन छाँव , मैं
किसी को धूप से बचाने लगी हुं...
बन खास , मैं
किसी को बहुत पसंद आने लगी हुं...
बन प्यार , मैं
किसी के दिल को धड़काने लगी हुं॥
प्रस्तुतकर्ता Dimple Maheshwari पर 10:10 AM 53 टिप्पणियाँ
Wednesday, July 20, 2011
" आखिर मिल ही गये "
एक मासूम बच्चे की , खिलखिलाहट
पेड़ के सूखों पत्तों की , सरसराहट
दोनों के मिलन से, हुआ संगीत का सृजन
दबे होठों से निकले, उस "बोल" को सुन
झरने का बहता पानी, बुनने लगा धुन
बिन बारिश ही, भीगे सबके बदन
कंपकंपी सी छूटी, नाचे मयूरी मन
बाग़ में कलियाँ, एक साथ खिलने लगी
दिलों में प्यार की, ख्वाहिशें जगने लगी
उपरवाले ने, किस्मत में नए रंग भरे
बातों मुलाकातों से, वो लम्हे थे परे
सदियों से जुड़े वो एक बार फिर जुड़ गये
दो किनारे नदी के देखो, आखिर मिल ही गये !
प्रस्तुतकर्ता Dimple Maheshwari पर 11:36 AM 46 टिप्पणियाँ
Monday, January 3, 2011
कहानी एक औरत की..
ये कहानी हैं एक औरत की..
हुई थी जो कुछ दिनों पहले
हवश का शिकार॥
ये मुर्दा समाज कहता हैं...
उसका जीना हैं बेकार
ढंकी हैं आज पूरे कपड़ों में
फिर भी नग्न नजर आती हैं ॥
ये पुरवाई भी
अब नही सुहाती हैं ॥
देख खुद को आईने में...
लजाती नही..झल्लाती हैं ॥
किया था वादा ..
उसकी गली डोली ले आने का
अब झांकता तक नही उस ओर ॥
कॉलेज में हर साल , इनाम
उसके हाथों में समाते नहीं थे
निष्कासित किया जा चुका हैं
असर दूसरे बच्चो पर पड़ेगा..कहकर
दो साल से टॉप कर रही थी
ये तीसरा साल किताबों से खेल रही थी ॥
हर रात वह चिल्ला उठती हैं
मारे डर के सो नहीं पाती हैं...
माँ भाग कर आती हैं .....
पोंछ उसका पसीना समझाती हैं
उस डर से बाहर निकालती हैं
पर क्या निकाल पाती हैं??
एक नाकाम कोशिश माँ हर रात करती हैं॥
पानी डाल तन पर अपने
वह रगडती हैं जोरो से ...
उसे दाग नजर आते हैं
अपनी देह पर हर कहीं....
पूरा दम लगा के भी वह मिटा नहीं पाती ॥
सहेली उसकी सुख दुःख की संगी
रास्ता भूल चुकी हैं घर का उसके ॥
माँ संग बाजार जाए
तो फब्तियां लाश को
मार डालती हैं फिर से एक बार॥
उसकी नग्न पुकार
नग्न हैं उसकी चीत्कार
नग्न देह का दर्द भी अब नंगा हो चुका हैं॥
हर अनजान शक्ल में ..
दरिंदा नजर आता हैं
क्या हैं ये सब?
हमारी बिगडती मानसिकता...
या ख़त्म होती मानवीयता॥
क्या इन दरिंदों के घर
कभी बेटियाँ पैदा नही होगी????
प्रस्तुतकर्ता Dimple Maheshwari पर 2:22 AM 135 टिप्पणियाँ
Tuesday, August 10, 2010
पर्व आजादी का
निकली वो घर से
कॉलेज के लिए
थी रास्ते में
बजी सिटी
उड़ी फब्ती
नजर तक ना उठा सकी
चुनरी संभालती
तेज क़दमों से
पहुंची सिटी बस स्टैंड
एक कागज की पुड़िया
टकराई उस से
और गिरी पैरों में
डरते हुए उठाई
खुलते ही पुड़िया
माथे पर पडी सलवटें
सलवटों के बीच
छिपती बूंदे
पसीने की
कांपे हाथ
छूटी पुड़िया
फिर गिर पडी पैरों में
आई बस
लगी लाईन
चढ़ी वो बस में
पीछे से आता धक्का
वो सकुचा के रह जाती
हर बार कोई टकराता
घबरा के रह जाती
इसी बीच कोई हाथ
छू कर निकाल गया
पर ये वाकया
सिर्फ एक बार नहीं हुआ
वो सिमटती रही
सरकती रही
हाथ तो बदला
पर हरकत वही रही
रुकी बस
वो उतर
चली कॉलेज की ओर
कुछ कदम कर रहे थे
उसके कदमों का पीछा
फर्राटे से भागती एक बाइक
आया झपटा
जो ले उड़ा उसका दुपट्टा
किसी तरह हाल तक पहुंची
जहाँ मनाया जा रहा था
पर्व आजादी का...!
प्रस्तुतकर्ता Dimple Maheshwari पर 11:34 PM 101 टिप्पणियाँ
Wednesday, May 19, 2010
भारत में आज यह क्या हो रहा |
इंसानियत को इन्सान भुलाता चला
प्रभु का आशीष भी अब हैं टला
अश्लील चित्रों तक सीमित हैं कला
नौजवानों से शिकायत करूँ क्या भला
चहुँ दिस घना अंधियार छा रहा ,
भारत में आज यह क्या हो रहा |
नेता ने खाकर डकार न ली
अभिनेता ने कुचल कर सुधि न ली
भारत में न खिली राम राज्य की कलि
न हिंद को असली स्वतंत्रता मिली
सैनिकों को जगा देश सो रहा ,
भारत में आज यह क्या हो रहा |
मनुष बन गया हैं अमीरों का चेला
भारत बन गया हैं बेईमानो का मेला
सूर्य अस्त होने की कैसे यह वेला
देश के नेताओं ने कैसा खेल खेला
आतंकवाद अपनी जड़ें फैला रहा ,
भारत में आज यह क्या हो रहा |
नारी की अस्मत खुले आम हैं लुटते
अधिकारी इमान सरे आम हैं बेचते
दंगे नित नए बहाने हैं ढूंढते
देशी आग में विदेशी ताप हैं सकते
सोने की चिड़िया नाम कहाँ खो रहा ,
भारत में आज यह क्या हो रहा.. |
प्रस्तुतकर्ता Dimple Maheshwari पर 6:03 PM 53 टिप्पणियाँ
Friday, May 7, 2010
एक बेटी on Mother's Day
तू इस जग से है न्यारी........मेरी माँ तू मुझको है प्यारी.......में हु तेरी राजदुलारी ....|
इस दुनिया का सबसे खुबसूरत लफ्ज़ क्या है????अगर कोई मुझसे ये सवाल करे तो मेरा जवाब होगा---माँ.........जरुरी नही की हर कोई इस सवाल का यही जवाब दे|जवाब बहुत सारे हो सकते है....और बहुत अच्छे अच्छे हो सकते है......पर मेरे लिए तो इस दुनिया में सबसे अच्छी और प्यारी मेरी माँ है......इस दुनिया में सबसे खुबसूरत शब्द है माँ......इस दुनिया में सबसे खुबसूरत जगह है मेरी माँ की गोद ....इस दुनिया में सबसे खुबसूरत चीज है मेरी माँ की मुस्कराहट ......मेरी कविताओं का एक अनमोल शीर्षक है मेरी माँ......!!!
एक बेटी के लिए माँ कि क्या एहमियत होती हैं ये सिर्फ एक बेटी ही समझ सकती हैं|
यादों के धुंधले सांएं में
बनी माँ की परछाईं
खाने की वही खुशबू
में रसोई में भागी चली आयी
ध्यान आया सहसा
यह तो स्वप्न हैं
पाऊं तुझे हर कोने में
पर माँ तू कहाँ हैं??
यह मेरे ढूंढने कि
इन्तहा हैं...
माँ तेरी चूल्हे कि रोटी
याद आती हैं..
माँ तेरी परियों सी
बोली याद आती हैं.
तेरे बिना बालों में
कंघी नहीं कर पाती
दिनभर में तेरी रेशमी
साड़ियों को हूँ सहलाती
अकेले में तू जाने क्या
सोचा करती थी
गुमशुम चुपचाप सी
रहा करती थी
ये गुत्थी आज भी
में सुलझा नहीं पायी
लौट के न कभी तू आएगी
ऐसा कहती हैं ताई
क्यों छूटा मुझसे साथ तेरा
में तरस गयी कहाँ प्यार तेरा
वो टोकना वो प्यार से
समझाना तेरा
लड़की हूँ में
ये एहसास दिला कर
मर्यादाएं सिखलाना तेरा
क्यों में तेरे आसुओं का
मर्म न जान पायी
क्यों तेरे दर्द की
गहराई समझ न पायी माँ
लगे कहीं चोट
तो निकले आह
हर आह के साथ
दिल बोले माँ
कब ये काली घटायें बरसे
मेरा रोम रोम
तेरे प्यार को तरसे
माँ आज भी
तेरे प्यार की भूखी हूँ
कलि हूँ तेरे डाली की
पर सूखी हूँ माँ ..|
प्रस्तुतकर्ता Dimple Maheshwari पर 11:07 AM 45 टिप्पणियाँ
Monday, April 26, 2010
बदलाव
परिवर्तन जीवन का नियम हैं..इस तथ्य से कोई भी अपरिचित नहीं हैं......बदलाव निश्चित हैं....फिर चाहे वो कहीं भी और कैसे भी किसी भी रूप में हो.......हमे बदलाव को स्वीकार करना और उसे अपनाना आना चाहिए...नहीं तो हम पीछे रह जायेंगे......जो बदल नही सकता....झुक नहीं सकता.....वो धारा के साथ नहीं बह सकता....हमे तो धाराप्रवाह बहाना हैं ...कदम से कदम मिलाकर....तो थोडा लचीला तो होना पड़ेगा....प्रकृति भी बदलाव पसंद करती हैं.ये बात अलग हैं कि कुछ बदलाव हमने उस पर जबरदस्ती थोपे हैं जिसकी एक जबरदस्त कीमत एक दिन हमें ही चुकानी हैं....फिलहाल थोड़ी बहुत तो चुका ही रहें हैं...पर ये तो ब्याज हैं.....असल तो अब पता चलेगा....खैर बदलाव पर कुछ शब्दों का ताना बाना....
चाहे तारे चमके
चाहे चंदा चहके
चाहे हो घना अंधकार
होके रहेगा होनहार
काली रात के बाद उजली प्रभा तो आनी ही हैं
चाहे बादल गरजे
चाहे किसान तरसे
चाहे बिजली करे प्रहार
होके रहेगा होनहार
इन काली घटाओं के बाद बरखा तो होनी ही हैं
चाहे हो खाली हंसी के प्याले
चाहे खाने को पड़ते हो लाले
चाहे आँखों में अश्रुधार
होके रहेगा होनहार
दुःख कि काली छाया के बाद सुख तो आना ही हैं
चाहे बुराई रावण समान
राम आएगा धर के कमान
चाहे अधम बड़ा ताकतवर
होके रहेगा होनहार
बुराई पर अच्छाई कि जीत तो होनी ही हैं|
प्रस्तुतकर्ता Dimple Maheshwari पर 9:38 AM 64 टिप्पणियाँ
Friday, April 9, 2010
बिना दिल का इन्सान
कोई गिरा पड़ा हैं रास्ते में
पर हमें देर हो रही हैं
तभी हो गया तमाशा रास्ते में
अब ऐसी भी क्या देर हो रही हैं
क्यों न मजा लिया जाए तमाशे का
किया जाए दिल को खुश
किस दिल को खुश किया जा रहा हैं
में ये समझ नही पा रही हूँ
गर दिल हैं ही
तो क्यों रोते को देख रोना न आया
घायल को देख क्यों न दिल पिघलाया
दीन दुखी इतने हैं दुनिया में
क्यों न उन्हें गले से लगाया
दिल होता तब न.
दिल तो अब लुप्त हो रहा हैं
डार्विन का सिद्धांत सिद्ध हो रहा हैं
हमारे ढांचे से गायब होता दिल
चिल्ला चिल्ला कर बता रहा हैं की
अब हमे दिल की जरूरत ही नही
बिना जरूरत की चीजें हम रखते नही
हमे तो बस दिमाग चाहिए
सारे काज कर लेते हैं अब हम दिमाग से
शायद अब भगवन भी बनाएगा
बिना दिल का इन्सान
प्रस्तुतकर्ता Dimple Maheshwari पर 11:27 PM 57 टिप्पणियाँ
Saturday, March 27, 2010
कोख में आतंकवाद
प्रस्तुतकर्ता Dimple Maheshwari पर 8:53 PM 32 टिप्पणियाँ
Monday, March 8, 2010
Woman's wish on women's day
मै आज उड़ना चाहती हुं..
आसमान को छूना चाहती हुं
में हर गली में घूमना चाहती हुं
बहुत हुआ घर का काम
अब कुछ पल में आराम चाहती हुं
छत पर बेठ कर घंटो
तारों को गिनना चाहती हुं
बन कर पंछी
आज फुदकना चाहती हुं
बहुत हो गयी डांट
हर वक्त किसी का साथ
इस पिंजरे से में
आज छूटना चाहती हुं
हैं आंसू छिपे इन आँखों में
दिल में दर्द हैं हजार
आज में फूटना चाहती हुं
बनकर छोटी सी बच्ची
आज में उछलना चाहती हुं..
कोई निकाल सके वक्त मेरे लिए
तो में आज कुछ कहना चाहती हुं
आज प्यार भरे दो लफ्ज
में सुनना चाहती हुं
अगर सच कहूँ में आज
तो ये सच हैं के
में जीना चाहती हुं में
बस जीना चाहती हुं
पर मौत को नही
जिन्दगी को जीना चाहती हुं..
हाँ में जीना चाहती हुं..!
प्रस्तुतकर्ता Dimple Maheshwari पर 7:24 AM 38 टिप्पणियाँ
Sunday, March 7, 2010
विधवा
वाह पायल जब
बजती थी
मानो कुछ गुनगुनाती थी
वह पायल जब
चलती थी
धड़कने रुक सी जाती थी
पर....
पर अब वाह पायल
कहीं नजर नही आती
पर अब वाह पायल
कभी नही छनछनाती
जाने क्या हो गया हैं
शायद....
शायद कुछ खो गया हैं
शायद कोई सो गया हैं
पहले वो सुहागिन थी
सजाती थी
संवरती थी
पायल भी पहनती थी
हर पल चहकती थी
पर....
पर अज वाह विधवा हैं
रब ने तो छिना हैं
पर दुनिया वालो ने
इसके रीती रिवाजो ने
मुश्किल किया जीना हैं
श्वेत वस्त्र
बिखरे बाल
बिना सजे
बिना संवरे
वह आज भी चलती हैं
पर आज उसके चलने में
कोई गुनगुनाहट नहीं
पर आज उसके चेहरे पर
वो मुस्कराहट नहीं
पर आज चूड़ियों में
वो खनखनाहट नहीं
बस धड़कने हैं
शांत....
नीरव....
????????
प्रस्तुतकर्ता Dimple Maheshwari पर 6:06 AM 12 टिप्पणियाँ
Wednesday, March 3, 2010
होली
वो कैसे खेले होली..?
जिसका खो गया हमझोली...
क्यों न चल पाया..,
साथ कदम सात..
जाते जाते ये तो..,
बताता जा उसे एक बात
वो कैसे खेले होली..?
जिसका खो गया हमझोली...
क्यों वो रह गयी अकेली?
उसका कहाँ गया हमझोली?
वो कैसे खेले होली..?
जिसका खो गया हमझोली...
कल तलक जो
रंगों से थी रंगी
आज क्यों
आंसुओ में हैं भीगी ?
वो कैसे खेले होली..?
जिसका खो गया हमझोली...
खुशियों से सराबोर थी
जिसको टोली
आज क्यों सुनी सुनी सी हैं
उसकी झोली?
वो कैसे खेले होली..?
जिसका खो गया हमझोली...!!
प्रस्तुतकर्ता Dimple Maheshwari पर 1:04 AM 8 टिप्पणियाँ
Sunday, February 28, 2010
लल्ली जने को सोच मत करो राजाजी अब के में लल्ला जनूंगी...
ऐसे रीति-रिवाज जो स्त्री वर्ग के लिए कष्टप्रद हैं, उन्हें नष्ट करने का हरसंभव प्रयत्न किया जाना चाहिए|दहेज़ एक ऐसा रिवाज हैं|इस बुराई को कानून द्वारा ही नष्ट नही किया जा सकता,इसके लिए सामाजिक चेतना और जाग्रति भी आवश्यक हैं|ये कार्य भविष्य में बनाने वाली सास अछि तरह कर सकती हैं,जिन्हें की इस रिश्वत(दहेज़)को लेने से इनकार कर देना चाहिए|दहेज़ की पातकी प्रथा के खिलाफ जबरदस्त लोकमत बनाया जान चाहिए और जो नवयुवक इस प्रकार का कार्य करे उनका मुंह काला कर के बाजार में घुमाना चाहिए और समाज से बहिष्कृत कर देना चाहिए|इसमें तनिक भी संदेह नही की यह एक ह्रदयहीन बुराई हैं|
प्रस्तुतकर्ता Dimple Maheshwari पर 10:37 PM 14 टिप्पणियाँ
Thursday, February 25, 2010
इजहार-ए -मोहब्बत
प्यार,कितना खुबसूरत शब्द बनाया है उपर वाले ने,पर हम ना जाने क्यों उस प्यार कि गहराई को समझ नही पा रहे,और एक लड़के का लड़की के प्रति और लड़की का लड़के के प्रति आकर्षण को ही प्यार का नाम दे देते हैं.में ये नही कहते कि लड़का और लड़की प्यार नही कर सकते.ऐसा नही हैं,प्यार होता हैं,बिलकुल होता हैं,बिना प्यार के जीने का कोई अर्थ ही नही,पर आज जिसे हम प्यार का नाम देकर घर से भाग रहे हैं या जहार खा रहे हैं वो प्यार नही.उसे जिद कह दो,या पागलपन,या कुछ भी.,पर वो प्यार नही.प्यार में समर्पण होता हैं.प्यार में सागर सी गहराई होती हैं.प्यार में ममता भी होती हैं.देश के लिए भी तो दिल में प्यार होता हैं.मरना ही हैं तो क्यों ना तो देश के लिए मरा जाये.में प्यार के खिलाफ नही,ना ही प्यार करने वालो के खिलाफ हुं.ना ही में वेलेंटाइन डे के खिलाफ हुं.जिन्हें मानना हैं,बिल्कुल मनाये,पर जिन्हें नही मानना कम से कम मानाने वालो पर अत्याचार ना करें,उनका विरोध ना करे,उनकी इच्छा हैं कि वो मानना चाहते हैं,और हम लोकतंत्र में जी रहे हैं.सबको अधिकार हैं अपनी मर्जी से अपने दायरे में रह के जीने का.ये पर्व किसी महान संत का जन्मदिन हैं,मनाने के कोई बुराई नही.
प्रस्तुतकर्ता Dimple Maheshwari पर 1:07 AM 20 टिप्पणियाँ