वाह पायल जब
बजती थी
मानो कुछ गुनगुनाती थी
वह पायल जब
चलती थी
धड़कने रुक सी जाती थी
पर....
पर अब वाह पायल
कहीं नजर नही आती
पर अब वाह पायल
कभी नही छनछनाती
जाने क्या हो गया हैं
शायद....
शायद कुछ खो गया हैं
शायद कोई सो गया हैं
पहले वो सुहागिन थी
सजाती थी
संवरती थी
पायल भी पहनती थी
हर पल चहकती थी
पर....
पर अज वाह विधवा हैं
रब ने तो छिना हैं
पर दुनिया वालो ने
इसके रीती रिवाजो ने
मुश्किल किया जीना हैं
श्वेत वस्त्र
बिखरे बाल
बिना सजे
बिना संवरे
वह आज भी चलती हैं
पर आज उसके चलने में
कोई गुनगुनाहट नहीं
पर आज उसके चेहरे पर
वो मुस्कराहट नहीं
पर आज चूड़ियों में
वो खनखनाहट नहीं
बस धड़कने हैं
शांत....
नीरव....
????????
Sunday, March 7, 2010
विधवा
प्रस्तुतकर्ता Dimple Maheshwari पर 6:06 AM
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12 टिप्पणियाँ:
नारी की सवेदनाओ पर अच्छी कविता,भाव झलक रहे हैं,हम आभारी हैं,राजा राम मोहन राय के जिनके द्वारा सती प्रथा का अंत हुआ,नहीं तो आज पता नहीं क्या स्थिती होती.
विकास पाण्डेय
www.विचारो का दर्पण.blogspot.com
Sad poem and representing the situation of women in some parts of India. We must fight against the evil traditions that corrupt the life of women. Jai Hind
हृदय स्पर्शी प्रस्तुती है, डिंपल जी शुभकामनायें ॰॰॰॰॰॰
Kavita to bahut bhadiya lagi ....Shubhkaamnae!!
आपने एक वेहद सम्वेदनशील मुद्दे पर बहुत ही कुशलता से अपनी बात कही है. समय के साथ हालात बदले भी है लेकिन और अधिक बदलाव की जरूरत है.
yeh kya kahu sabd nahi ha
bas shresthtam abhiwyakti ha
just mindblowing
found it the best of ur's posts.. its amazing n very thoughtful with light words.
कितने विवश कितने दब्बु हम हो गये..
हाए...हम संवेदन-हीन हो गये..
अगर यही तेरी दुनिया का हाल है मालिक
तो मेरी क़ैद भली है मुझे रिहाई न दे
हम ग़ज़ल में तेरा चर्चा नहीं होने देते
तेरी यादों को भी रुसवा नहीं होने देते
jitana tarif ki jaye apki kavita ki utni kam he hum to apke fan ho gaye hai ...........suraj ko dipak dikhane jaise apki tarif he hamare pas shabd nahi he .......
सुन्दर शेली सुन्दर भावनाए क्या कहे शब्द नही है तारीफ के लिए .
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