Friday, April 9, 2010

बिना दिल का इन्सान



कोई गिरा पड़ा हैं रास्ते में
पर हमें देर हो रही हैं
तभी हो गया तमाशा रास्ते में
अब ऐसी भी क्या देर हो रही हैं
क्यों न मजा लिया जाए तमाशे का
किया जाए दिल को खुश
किस दिल को खुश किया जा रहा हैं
में ये समझ नही पा रही हूँ
गर दिल हैं ही
तो क्यों रोते को देख रोना न आया
घायल को देख क्यों न दिल पिघलाया
दीन दुखी इतने हैं दुनिया में
क्यों न उन्हें गले से लगाया
दिल होता तब न.
दिल तो अब लुप्त हो रहा हैं
डार्विन का सिद्धांत सिद्ध हो रहा हैं
हमारे ढांचे से गायब होता दिल
चिल्ला चिल्ला कर बता रहा हैं की
अब हमे दिल की जरूरत ही नही
बिना जरूरत की चीजें हम रखते नही
हमे तो बस दिमाग चाहिए
सारे काज कर लेते हैं अब हम दिमाग से
शायद अब भगवन भी बनाएगा
बिना दिल का इन्सान