Tuesday, February 25, 2014

शब्दों की गुत्थमगुत्थी

शब्दों  की  गुत्थमगुत्थी  मैं, यूँ  न   उलझाओ ,
बह  जाने  दो मुझे ....... भावों   की  सरिता में।
होंगे तुम अथाह  सागर बेइन्तहा  मोहब्बत के ,
में बारिश कि पहली बूँद, चाहत बनी चाकोर की। 
तुम वाह -वाही लूटने वाले शेर, कथा कहने वाले लेख ,
में कविता सादगी भरी, में ही  ग़ज़ल तेरे अधरों की।
में हवा का झोंका हूँ , तूफ़ान भी हिला न पाएगा ,
गगन सी ऊंचाइयों पर रहकर भला .......
धरती से मिलन कैसे कर पाओगे ??????


Friday, February 14, 2014

मेरी कल्पना के पन्नो से …



मेरी कल्पना के पन्नो से …

प्रेम कोई शब्द नहीं जिसे लिख पाओगे
कोई अर्थ नहीं जिसे समझ पाओगे
ये तो वीणा का सुर हैं …
बह गए तो बस बहते ही चले जाओगे
खो गए गर प्रेम में तो लौट के न आ पाओगे
कैसे मना लोगे प्रेम को एक दिन में भला
शुरू जो हुआ तो इसका कोई अंत नहीं
गुलाब-तोहफा भला कैसे इज़हार कर पायेगा
बयां जो तेरी कविता ने किया
उसका कोई विकल्प नहीं ---

दिल से --- डिम्पल