Wednesday, July 20, 2011

" आखिर मिल ही गये "







एक मासूम बच्चे की , खिलखिलाहट
पेड़ के सूखों पत्तों की , सरसराहट
दोनों के मिलन से, हुआ संगीत का सृजन
दबे होठों से निकले, उस "बोल" को सुन
झरने का बहता पानी, बुनने लगा धुन
बिन बारिश ही, भीगे सबके बदन
कंपकंपी सी छूटी, नाचे मयूरी मन
बाग़ में कलियाँ, एक साथ खिलने लगी
दिलों में प्यार की, ख्वाहिशें जगने लगी
उपरवाले ने, किस्मत में नए रंग भरे
बातों मुलाकातों से, वो लम्हे थे परे
सदियों से जुड़े वो एक बार फिर जुड़ गये
दो किनारे नदी के देखो, आखिर मिल ही गये !