Monday, March 26, 2012

कभी गले सकता मुझे

कभी गले लगा सकता मुझे 







कहता हैं, कई रातों से 
मुझे नींद नहीं आती 
फिर अचानक पूछ बैठा..
सपनों में क्यों आती हो!!
बोलती हूँ तो कहता हैं..
आवाज प्यारी लगती हैं
चुप हो जाऊं गर तो..
मेरी ख़ामोशी अच्छी लगती हैं.
हर अरमान उसका 
मेरी पनाह में आ जाये
सौ कसूर मेरे
वो बेकसूर कहलाये
कुछ कहने को आतुर 
वो होठ फड़कते रहते हैं..
हर बार बस एक ही बात.
"कुछ बात हैं ऐसी तुम में" 
देखता हैं मेरी आँखों में 
बिना पलक झपकाए 
वो दिन भी आये खुदा 
वो मुझसे कुछ कह पाए.
टेढ़ी मेढ़ी उलझन भरी 
बातें बना लेता हैं..
काश..
काश इसी शिद्दत से 
कभी गले लगा सकता मुझे !!