ये कहानी हैं एक औरत की..
हुई थी जो कुछ दिनों पहले
हवश का शिकार॥
ये मुर्दा समाज कहता हैं...
उसका जीना हैं बेकार
ढंकी हैं आज पूरे कपड़ों में
फिर भी नग्न नजर आती हैं ॥
ये पुरवाई भी
अब नही सुहाती हैं ॥
देख खुद को आईने में...
लजाती नही..झल्लाती हैं ॥
किया था वादा ..
उसकी गली डोली ले आने का
अब झांकता तक नही उस ओर ॥
कॉलेज में हर साल , इनाम
उसके हाथों में समाते नहीं थे
निष्कासित किया जा चुका हैं
असर दूसरे बच्चो पर पड़ेगा..कहकर
दो साल से टॉप कर रही थी
ये तीसरा साल किताबों से खेल रही थी ॥
हर रात वह चिल्ला उठती हैं
मारे डर के सो नहीं पाती हैं...
माँ भाग कर आती हैं .....
पोंछ उसका पसीना समझाती हैं
उस डर से बाहर निकालती हैं
पर क्या निकाल पाती हैं??
एक नाकाम कोशिश माँ हर रात करती हैं॥
पानी डाल तन पर अपने
वह रगडती हैं जोरो से ...
उसे दाग नजर आते हैं
अपनी देह पर हर कहीं....
पूरा दम लगा के भी वह मिटा नहीं पाती ॥
सहेली उसकी सुख दुःख की संगी
रास्ता भूल चुकी हैं घर का उसके ॥
माँ संग बाजार जाए
तो फब्तियां लाश को
मार डालती हैं फिर से एक बार॥
उसकी नग्न पुकार
नग्न हैं उसकी चीत्कार
नग्न देह का दर्द भी अब नंगा हो चुका हैं॥
हर अनजान शक्ल में ..
दरिंदा नजर आता हैं
क्या हैं ये सब?
हमारी बिगडती मानसिकता...
या ख़त्म होती मानवीयता॥
क्या इन दरिंदों के घर
कभी बेटियाँ पैदा नही होगी????
Monday, January 3, 2011
कहानी एक औरत की..
प्रस्तुतकर्ता Dimple Maheshwari पर 2:22 AM 135 टिप्पणियाँ
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