Wednesday, July 31, 2013

 एक भारतीय नारी का फेसबुक स्टेटस पढ़ा आज…कहती हैं कि लड़की को क्यों  इतने सारे जबरदस्ती के रिश्तों में बांध दिया जाता हैं…क्यों नहीं वह सिर्फ एक उस रिश्ते के साथ अपनी जिन्दगी ख़ुशी से गुजार  सकती जिसके साथ वह रहना चाहती हैं यानी की उसका पति .
जी शादी सिर्फ़ दो लोगों के बीच का बंधन नहीं हैं … शादी दो परिवारों के बीच होती हैं … पर जिन्हें रिश्ते ही बंधन लगते हो …. उनके लिए शादी की पवित्रता को समझना थोडा कठिन हैं …… और रही बात उस एक मिया बीवी के रिश्ते में खुश रहने की तो नारीजी आपके माता पिता  नाहक ही आपका बोझ उठाया और आपके पति के माता पिता ने उनका …वो लोग भी आपके नक़्शे कदम पर चले होते तो शायद आप दोनों ही न होते …. आपके भाई की शादी भी इसी सोच वाली लड़की से हो और वो अपने पति के साथ अकेले सुखी संसार बिताये …आपके बच्चे भी इसी एक रिश्ते में खुश रहे …। शायद इस दर्द का एहसास अभी न हो आपको क़्यो कि फ़िलहाल आप इस दर्द का वितरण कर रही हैं … पर झेलने की बारी भी आएगी…आप जिन रिश्तो में नहीं बंधना चाहती वो रिश्ते शायद आपके पति के साथ बरसों से हैं पर आप कामयाब होती दिख रही मुझे अपने साथ अपने पति को भी इसी एक रिश्ते में ख़ुशी से जीने की आदत डालने की …. परिवार शायद इसीलिए ख़तम हो रहे हैं …. परिवार को तो नारी जोडती हैं पर जब आज की पढ़ी लिखी नारी ने परिवार तोड़ने का जिम्मा अपने सर ले ही लिया हैं तो …अजीब लगता हैं  कभी कभी …सिर्फ़ में और तू और कोई नहीं … कोई रिश्ता नहीं कोई परिवार नहीं …. रोक टोक नहीं । तू मुझे देख कर जिये और में तुझे देख कर … प्यार … अच्छा हैं … पर ये स्वार्थी प्यार हैं … और मेरी  डिक्शनरी इसे प्यार नहीं कहती ….