Tuesday, May 21, 2013

मन







 जाने क्यों मन में एक अजीब सा ख्याल आया और में अपने ही मन से पूछ बे ठी उसकी चाहत . सालों से जैसे इसी सवाल का इन्तजार कर रहे मन की मुराद पूरी हो गयी . वो नाचने लगा . मेरे भी पैर मन के साथ ताल में ताल मिलाकर एक अरसे के बाद  थिरकने लगे थे . मन ने शाम का ढलता सूरज दिखाया . में आँखें मूंद , दोनों हाथ फैलाये शायद हमेशा के लिए उस नज़ारे को खुद में समा लेना चाहती थी . तारों से भरे नील आसमान को देख इधर मेरे मन में कविता  उमड़ने लगी ...और उधर मन ने मेरी डायरी हाथों में थमाँ दी जिस पर अब धूल जमने लगी थी . चेहरे पर मुस्कराहट .. आँखों में आंसू ..कभी जी में आता की इतना  जोर से हसूँ  कि  मेरे हंसने की आवाज पहाड़ों से टकरा कर वापस मेरे की कानों में मिसरी  घोल दे… और कभी रोने का मन करता .. एक दर्द भरी चीत्कार जो सागर के उतार चढाव के साथ बह जाए.खुद को खोने का दर्द ...कांच की एक ऐसी पेटी में कैद हो जाने का दर्द था ये जहां सिर्फ AC की हवा हैं.आज मदमस्त लहराती पवन ने छुआ तो लगा जैसे मेरे पिंजरे की एक दिवार ढह गयी ...मशीन फिर से इंसान बन गयी ....