Wednesday, March 3, 2010

होली


वो कैसे खेले होली..?
जिसका खो गया हमझोली...
क्यों न चल पाया..,
साथ कदम सात..
जाते जाते ये तो..,
बताता जा उसे एक बात
वो कैसे खेले होली..?
जिसका खो गया हमझोली...
क्यों वो रह गयी अकेली?
उसका कहाँ गया हमझोली?
वो कैसे खेले होली..?
जिसका खो गया हमझोली...
कल तलक जो
रंगों से थी रंगी
आज क्यों
आंसुओ में हैं भीगी ?
वो कैसे खेले होली..?
जिसका खो गया हमझोली...
खुशियों से सराबोर थी
जिसको टोली
आज क्यों सुनी सुनी सी हैं
उसकी झोली?
वो कैसे खेले होली..?
जिसका खो गया हमझोली...!!

8 टिप्पणियाँ:

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹 said...

dimpal ji ..aapki lekhni ki utkrisht rchna ...bdhayee

bharat kumar maheshwari said...

>>>>>>>>>>>>>>>>>>

रचना दीक्षित said...

सुंदर रचना शुभकामनायें

bharat kumar maheshwari said...

bahoot khoob....

bharat kumar maheshwari said...

बहुत सताते हैं रिश्ते जो टूट जाते हैं
खुदा किसी को भी तौफीक-ऐ-आशनाई न दे

मैं सारी उम्र अंधेरों में काट सकता हूँ
मेरे दीयों को मगर रौशनी पराई न दे

bharat kumar maheshwari said...

हम ग़ज़ल में तेरा चर्चा नहीं होने देते
तेरी यादों को भी रुसवा नहीं होने देते

sandeepprajapati said...

हार्दिक धन्यवाद मेरे जैसे नवागंतुको का स्वागत करने और मार्गदर्शन करने के लिए,
अभी इस लायक नही हून की आपकी रचना पर कोई टिप्पणी दे सकूँ
लेकिन जितना भी समझ मे आया अतिउत्तम रचना