Friday, February 14, 2014

मेरी कल्पना के पन्नो से …



मेरी कल्पना के पन्नो से …

प्रेम कोई शब्द नहीं जिसे लिख पाओगे
कोई अर्थ नहीं जिसे समझ पाओगे
ये तो वीणा का सुर हैं …
बह गए तो बस बहते ही चले जाओगे
खो गए गर प्रेम में तो लौट के न आ पाओगे
कैसे मना लोगे प्रेम को एक दिन में भला
शुरू जो हुआ तो इसका कोई अंत नहीं
गुलाब-तोहफा भला कैसे इज़हार कर पायेगा
बयां जो तेरी कविता ने किया
उसका कोई विकल्प नहीं ---

दिल से --- डिम्पल

5 टिप्पणियाँ:

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत ही बढ़िया।

आपके फेसबुक प्रोफाइल से यहाँ तक आना हुआ।
अच्छा लगा आपका ब्लॉग।

सादर

Dimple Maheshwari said...

Thank u

मैत्रेय मनोज ' एम ' said...

Dimple,
your some verses are really touches those heights on which the great poet of the world are situated
.....like this one

Unknown said...

very gd.

Ranjana Maurya said...

Nice