मेरी कल्पना के पन्नो से …
प्रेम कोई शब्द नहीं जिसे लिख पाओगे
कोई अर्थ नहीं जिसे समझ पाओगे
ये तो वीणा का सुर हैं …
बह गए तो बस बहते ही चले जाओगे
खो गए गर प्रेम में तो लौट के न आ पाओगे
कैसे मना लोगे प्रेम को एक दिन में भला
शुरू जो हुआ तो इसका कोई अंत नहीं
गुलाब-तोहफा भला कैसे इज़हार कर पायेगा
बयां जो तेरी कविता ने किया
उसका कोई विकल्प नहीं ---
दिल से --- डिम्पल
5 टिप्पणियाँ:
बहुत ही बढ़िया।
आपके फेसबुक प्रोफाइल से यहाँ तक आना हुआ।
अच्छा लगा आपका ब्लॉग।
सादर
Thank u
Dimple,
your some verses are really touches those heights on which the great poet of the world are situated
.....like this one
very gd.
Nice
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